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पूष॒न्तव॑ व्र॒ते व॒यं न रि॑ष्येम॒ कदा॑ च॒न। स्तो॒तार॑स्त इ॒ह स्म॑सि ॥९॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

pūṣan tava vrate vayaṁ na riṣyema kadā cana | stotāras ta iha smasi ||

पद पाठ

पूष॑न्। तव॑। व्र॒ते। व॒यम्। न। रि॒ष्ये॒म॒। कदा॑। च॒न। स्तो॒तारः॑। ते॒। इ॒ह। स्म॒सि॒ ॥९॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:54» मन्त्र:9 | अष्टक:4» अध्याय:8» वर्ग:20» मन्त्र:4 | मण्डल:6» अनुवाक:5» मन्त्र:9


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

कौन किसमें अहिंसक हों, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (पूषन्) पालन करनेवाले धर्मात्मन् ! जिस (ते) आपके (इह) इस संसार में (स्तोतारः) विद्या की स्तुति करनेवाले (वयम्) हम लोग (स्मसि) हैं उस (तव) आपके (व्रते) कर्म में (कदा, चन) कभी भी हम लोग (न, रिष्येम) नष्टकर्त्ता न होवें ॥९॥
भावार्थभाषाः - जो सत्यविद्याओं की प्रशंसा करनेवाले मनुष्य हों, वे विद्वानों के काम में हिंसा करनेवाले न हों ॥९॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

के कस्मिन्नहिंस्राः स्युरित्याह ॥

अन्वय:

हे पूषन् ! यस्य त इह स्तोतारो वयं स्मसि तस्य तव व्रते कदा चन न रिष्येम ॥९॥

पदार्थान्वयभाषाः - (पूषन्) पालक (तव) (व्रते) कर्मणि (वयम्) (न) (रिष्येम) हिंस्याम (कदा) (चन) अपि (स्तोतारः) विद्यास्तावकाः (ते) तव (इह) (स्मसि) ॥९॥
भावार्थभाषाः - ये सत्यविद्यानां प्रशंसका मनुष्याः स्युस्ते विद्वत्कर्मणि हिंसका न स्युः ॥९॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे सत्य विद्येचे प्रशंसक असतील त्यांनी विद्वानांच्या कार्यात विघ्न आणू नये. ॥ ९ ॥